PATNA : कल नहाय खाय के साथ चैती छठ महापर्व (Chaiti Chhath 2022) की शुरुआत हो गई है. आज खरना पूजा है. खरना को लोहंडा भी कहती हैं. छठ पर्व में इस दिन का विशेष महत्व होता है. नहाय-खाय वाले दिन घर को पवित्र कर व्रती अगले दिन की तैयारी करती हैं. जब खरना आता है तो सुबह व्रती स्नान ध्यान करके पूरे दिन का व्रत रखते हैं.
अगले दिन भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए प्रसाद भी बनाया जाता है. शाम को पूजा के लिए गुड़ से बनी खीर बनाई जाती है. इस खीर को कुछ जगहों पर रसिया भी कहते हैं. इस प्रसाद को मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर बनाया जाता है. हालांकि शहरी इलाकों में मिट्टी के चूल्हे की उपलब्धता न हो पाने की स्थिति में कुछ लोग नए गैस चूल्हे पर भी इसे बनाते हैं, पर चूल्हा नया हो और अशुद्ध न हो इसका खास ध्यान रखा जाता है.
दिन भर तैयारी के बाद शाम में व्रती विधि-विधान से छठ मइया की पूजा-अर्चना कर खरना का अनुष्ठान करेंगी. इसके साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाएगा. शाम में व्रतियों द्वारा स्नान कर विधि पूर्वक मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी से खरना के प्रसाद के लिए खीर और घी चुपड़ी रोटी बनाकर छठ मइया को केला के पत्ते पर प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाएगा.
इसके बाद व्रती खुद इसे ग्रहण करेंगी और फिर खरना का प्रसाद परिवार के सदस्यों और आसपास के लोगों के बीच वितरण किया जाएगा. इस दौरान व्रतियां महिलाओं को सिंदूर लगाकर अखंड सुहाग का आशीर्वाद देंगी तथा पुरुषों और बच्चों को भी सिंदूर का तिलक लगाकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दिया जाएगा.
सामग्री लिस्ट
प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने तीन सूप, लोटा, थाली, दूध और जल के लिए ग्लास, नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा, चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक, पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो, सुथनी और शकरकंदी, हल्दी और अदरक का पौधा हरा हो तो अच्छा, नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, जिसे टाब भी कहते हैं, शहद की की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई.
प्रसाद ग्रहण करने का ये है नियम
खरना की पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करने का भी विशेष नियम है. पूजा करने के बाद व्रती के प्रसाद ग्रहण करने के दौरान घर के सभी लोगों को बिल्कुल शांत रहना होता है. मान्यता है कि शोर होने के बाद व्रती खाना खाना बंद कर देता है. पूजा का प्रसाद व्रती के प्रसाद ग्रहण करने के बादी ही परिवार के अन्य लोगों में बांटा जाता है और परिवार उसके बाद ही भोजन करता है.